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आज़मगढ़, शिबली कॉलेज के फाउंडर अल्लामा शिबली नोमानी का आज ही के दिन 18 नवम्बर 1914 को आज़मगढ़ में इंतेक़ाल हुआ।
नोमानी अरबी उर्दू फारसी और तुर्की ज़ुबान के आलिम थे। आप ने हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहे वसल्लम की ज़िंदगी पर "सीरत-उन-नबी" किताब लिखी थी। शिबली नोमानी इस किताब का दो चेप्टर ही लिख पाए थे बाकी के चेप्टर सैय्यद सुलेमान नदवी ने लिखा था।
"सीरत-उन-नबी" किताब लिखने के सिलसिले में सीरिया तुर्की और इजिप्ट की यात्रा पर भी गए वहां सीरिया और वहां के बड़े आलिमों और मुफ़्ती शेख मुहम्मद अब्दुह से मिले उनकी मदद से अपनी किताब के लिए जानकारी इकट्ठा की। शिबली नोमानी के इस सफर का ख़र्चा भोपाल के नवाब बेग़म सुल्तान जहां ने फंड किया था।
1882 में वापस हिंदुस्तान लौटे तो सर सैय्यद अहमद खां ने उन्हें अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में अरबी और फारसी पढ़ाने के लिए बुलाया। कई सालों तक अलीगढ़ यूनिवर्सिटी में पढ़ाया।
अलीगढ़ यूनिवर्सिटी छोड़ने के बाद हज़रत नोमानी ने हैदराबाद की उस्मानिया यूनिवर्सिटी जॉइन कर ली। 1905 में हैदराबाद छोड़कर लखनऊ आ गए और यही नदवा यूनिवर्सिटी में प्रिंसिपल बन गए। हालांकि मुख़्तलिफ़ यूनिवर्सिटी में पढ़ाने के दौरान ही हज़रत नोमानी ने 1883 में शिबली कॉलेज की नींव डाल दी थी तब ये एक छोटा स्कूल हुआ करता था 1895 में हाइस्कूल की मान्यता मिली।
1914 में हज़रत नोमानी की वफ़ात हो गई और एक लंबे वक्फे के बाद 1946 में डिग्री कॉलेज की मान्यता मिली। इतना पुराना कॉलेज होने के बावजूद इसे एक बड़ी यूनिवर्सिटी का दर्ज़ा नही मिला और ना ही आज़मगढ़ के लीडरों ने कोशिश की वरना शिबली कॉलेज भी अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी जैसी बड़ी यूनिवर्सिटी बन सकती थी और पूर्वांचल के स्टूडेंट्स को पढ़ाई के लिए बाहर नही जाना पड़ता।
#mughal_saltanat
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